*क्या आदिवासीओ को धर्म कोड और पहचान चाहिए*
तो जाने क्या हम हकदार हैं।
या हमें अपनी धर्म कोड पहचान मिटाने हैं।
*समाज की पहचान उनकी अपनी धर्म संस्कृति*
*संस्कार रीतिरिवाज तीज त्योहार*
क्या हम अपने संस्कृति संस्कार के तहत चल रहे हैं। हां तो आपकी पहचान बरकरार है।
नहीं तो आपका संस्कृति मिट चुका है या मिट रहा है। मिटाने वाला कौन आप हम सब पढे लिखे।
*जाने क्यों और कैसे*
आदिवासीओ के तीन प्रमुख संस्कार - जन्म विवाह मृत्यु।
पर लोग हिन्दू संस्कृति के सोलह संस्कार को मान रहे हैं अपनी बडप्पन समझ रहे हैं।
जन्म संस्कार में छठी पंच बंधन करधन के रूप में।न्ई जीव उत्पत्ति की रक्षा सुरक्षा हेतु शुद्धि करन अपने देव शक्तियो का पूजा अर्चना।
पर आज लोग क्ई महिनों में मनाते हैं न शुद्धि करन का नेग न पंच बंधन जिसे पांच माता काला रेशम से करधन के रूप में नवजात के कमर में बांधते हैं।
आज दूर हो गया है।
आदिवासीओ में जन्म दिन मनाने जैसी कोई बात नही पर आज बच्चे तो बच्चे बडे बुढे बडे चाव से जन्मदिन मनाते हैं और लाखो तक खर्च कर देते हैं।
क्या पहचान संस्कार और संस्कृति रहा आपका।
*विवाह में*
लोग सगाई में अब लडको का जाना फैशन हो गया है।
सगाई में अंगुठी पहनाना फैशन होगया।
सगाई में हार पहनाना फैशन हो गया।
*कहाँ गया आपका संस्कृति और संस्कार ये सब हिन्दू धर्म में होता था। अब अधिकांश पढे लिखे लोग अपने को ज्यादा होशियार और शिक्षित समझ रहे हैं।*
समझ नहीं आता अपने संस्कार संस्कृति को नष्ट कर हम कहते हम आदिवासी हैं।
बडे शर्म और दुख की बात है समाज के लिए।
क्ई कहते हैं कि दुनिया बदल रहा है सोच बदले।
तो ऐसे लोगों को मै कहता समाज छोडो जाति बदलो हिन्दू बनो।
*अपने धर्म संस्कृति को संस्कार को रौंद कर रीतिरिवाज को तोड कर आगे बढ़ने समाज संस्कृति को नष्ट कर रहे हो तो आप आदिवासी हो ही नही सकते। जाति प्रमाण रद्द कर दो*।
इसी लिए तो बिना पहचान के आदिवासीओ को न धर्म कोड दे रहा न संरक्षण न आरक्षण। क्योंकि आदिवासी पैसे वाले हो चुके हैं।
*शर्म करें ऐसे लोग ऐसे पढे लिखे युवा युवती जो दिखावे में अपने समाज संस्कृति को संस्कार रीतिरिवाज को नष्ट करने काम कर रहे हैं। अपने को हिन्दू साबित करने का कार्य कर रहे हैं।*
विवाह मे धोती साड़ी के जगह जीन्स सफारी घाघरा चोली
मौर के जगह मारवाड़ी टोपी ब्राह्मण पूजा हद हो गया धर्म संस्कृति समाज नाशको और कहते हो कि हम आदिवासी हैं।
किस आधार पर। अपने हक मांग रहे हैं। धर्म कोड और आरक्षण मांग रहे हैं। शर्म करें।
दिखावा हमारा रुढीवादी परंपरा नही है जिसके तहत संविधान ने हमे आरक्षण दिया। अलग पहचान दिया।
*ठीक उसी प्रकार मृतक संस्कार में - दाह संस्कार आखिर ब्राह्मणो के चंगुल में आ गये दिखावे में आ गये।*
गंगा गये ब्राह्मणो पूजा, हड्डियों को किसने छुआ आदिवासी विरोधी ब्राह्मण ने।
पिण्ड दान क्या है - जो गंगा में पिण्ड दान कराते हो।
*पिण्ड का मतलब समझते है।*
*सशरीर ही पिण्ड है।मर गया तो कैसा पिण्ड दान। आटे का क्या आटा मांस हड्डी खुन बन गया* समझ नही आता। जला देते हो हड्डी ले जाते हो हड्डी दान क्यों नही कहते *
क्या ये आदिवासी संस्कार संस्कृति रीतिरिवाज मे हैं।
तो काहे का आदिवासी क्या पहचान क्या संस्कृति क्या संस्कार।
हद हो गया। बनते जाओ हिन्दू। बन गये हिन्दू। नष्ट करो अपने समाज संस्कृति।
*वो जंगलो रहने वालो ने अपने समाज संस्कृति संस्कार को रीतिरिवाज को संरक्षित कर रखा है। जो न जन्म दिवस मनाते। जो न सगाई फलदान न अंगूठी पहनाते न हार। जो मृतक में मिट्टी संस्कार कर अपने अस्तित्व और अस्मिता की रक्षा कर रहे हैं*।
पर आज पढे लिखे गांवो को भी दुरस्त अंचलो को भी प्रदुषित करने का कार्य कर रहे हैं। कारण पढ लिख गये हैं सभ्य बन गयें है नौकरी मिल गया समाज संस्कृति के कारण पैसे वाला हो गया। अब उसी समाज संस्कृति संस्कार रीतिरिवाज को गंदा करने पत्तल में छेद करने का काम कर रहे हैं।
तो काहे आदिवासी।
*सम्हल जावो समाज के संस्कृति रुढीवादी परंपरा ही संविधान वर्णित आरक्षण, पहचान की रक्षा कर सकता है। अन्यथा। मोदी और सवर्ण कर रहा है अच्छा ही कर रहा है*।
सवर्ण हिन्दू धर्म संस्कृति के गुलाम हो गुलाम ही रहोगे।
🏹 Rkkunjam 🏹
अध्यक्ष गोण्डी धर्म संस्कृति संरक्षण समिति एवं महासचिव मावली महासभा